जय कपीस तिहुँ लोक उजागर


पठान के आखिरी ऒवर की चौथी गेंद फेंकने की देर थी कि बस...उसके बाद मैदान और दर्शक दीर्घा में अंतर करना नामुमकिन सा हो गया, 105 करोङ (..और जारी) भारतीयों के गले रुँध गये, कुछ की आँखो की कोरों पर आँसू चिपक गये और कुछ के ढुलक पङे, जोश में मदमस्त किसने कैसी शारीरिक प्रतिक्रिया दी किसे होश था,105 करोङ (..और जारी) भारतीय बंदरों की तरह नाच रहे थे, अब ऑस्ट्रेलियाई मीडिया और खिलाङियों को कौन समझाये कि जनाब बंदर होना या बन जाना कोई शर्म की बात नहीं, जिस 'Monkey Gesture' की दुहाई देकर ऑस्ट्रेलियाई सच्चाई से मुँह मोङते रहे अंत में जाकर उनके ही गले का फंदा साबित हो गया,ऑस्ट्रेलियाई टीम के घंमंड और उसके चकनाचूर होने की कहानियाँ तो अब बरसों तक हिंदुस्तानी बच्चों की लोरी का काम करती रहेंगी, पर गौर करने वाली बात तो ये है कि क्या सायमण्डस समझ पायेंगे भारतीयों के मनोभाव को?या अब भी घमंड और मूर्खता की रेत में सर गङाये, नस्लवादी अवशेष ढूँढते,अपनी संकुचित शतुर्मुर्गी मानसिकता में ही जीते रहेंगे?

हद तो तब हो गयी जब हरभजन ने अपनी बगलें खुजलायीं तो उसे भी नस्लवादी और भङकाऊ करार दे दिया गया, ऑस्ट्रेलिया की पहले फाईनल में हुई हार वहाँ के अखबारों में शोक संवेदना जितना भी स्थान नहीं पा सकी, क्योंकि हरभजन के बगलों की तस्वीरों से ही सारे कोने पटे पङे थे,लगता है वहाँ के पत्रकारों के पास भारतीय मीडिया की तरह 'शर्मनाक हार' 'तू चल मैं आया' 'ताश के पत्तों की तरह ढेर' जैसे शब्द ही नहीं हैं, विश्व विजाताऒं के देश में लाज़िमी भी है, किंतु शायद अब उन्हें आदत डाल लेनी चाहिये।

इस सारे घटनाक्रम का सबसे मज़ेदार पहलू ये रहा कि ऑस्ट्रेलियाई मीडिया और खिलाङी अपने ही चक्रव्यूह में फँस गये, भारत के लिये इसने उल्टा उत्प्रेरक का काम कर दिखाया,और भारतीय टीम ने वो कर दिया जो शायद उन्होनें भी सोचा नहीं होगा।अब इससे ऑस्ट्रेलियाई क्या सबक लेते हैं ये तो आने वाला समय ही बतायेगा,परंतु हरभजन ने पूरे घटनाक्रम का डटकर मुकाबला किया,और जवाब खेल के मैदान पर ही दिया , ये बात भारतीय सहिष्णुता के सिद्धांत को और पुख्ता कर देती है। कोई दो राय नहीं कि हरभजन भी दूसरे मुरली बन गये होते यदि टीम का,बोर्ड का और भारतीय मीडिया का पुरज़ोर समर्थन न मिला होता। दावे के साथ कहा जा सकता है कि भारतीय जीत पर मुरली भी उतनी ही खुशियाँ मना रहे होंगे,क्योंकि ये जीत मानसिक दीवालियेपन पर सहिष्णुता की जीत है, षङयंत्र पर सिद्धांतो की जीत है, मूर्खता पर समझदारी की जीत है।मुरली जैसे महान खिलाङी के कपङे उतरवा कर शरीर पर सैकङों सेंसर फिट कर बॉलिंग एक्शन की जाँच कराने वाले ऑस्ट्रेलियाई स्वयं को विश्व क्रिकेट का सरगना समझ बैठे पर मैदान के बाहर भी वर्चस्व स्थापित करने की कुचेष्टा आत्मघातक साबित हुई। जब भारतीयों को पता चला कि सायमण्डस ने नस्लवाद के आरोप लगाये तो नब्बे प्रतिशत लोग तो यही नहीं समझ पाये कि सायमण्डस कैसे 'निगर' हैं?? फिर विवाद उठाया 'मंकी' होने का, सायमण्डस को कौन समझाये कि बजरंग बली का दर्जा पाना इतना भी आसान नहीं, फिर भी उनका प्रताप देखो कि उनके नाममात्र ने आपको इतनी कीर्ति और यश दे दिया कि 'आई पी एल' के बाज़ार पर आप सबसे ऊँचे दाम पर बिके विदेशी क्रिकेटर बन गये, भारतीय दानवीरता पर न सही अपनी किस्मत पर ही अगर ज़रा भी आश्चर्य हो रहा हो तो एक बार भारत आकर बाजरंग बली का मंदिर ज़रुर घूमें,ताकि आपको भी तो पता चले भारत में 'मंकी' की कितनी इज़्ज़त है,और तब भी समझ न आए तो हनुमान चालीसा में ऐसे ही दिमाग के रोगियों के लिये कहा गया हैः

"जाके बल से गिरिवर काँपे,रोग दोस जाके निकट न झाँपै।" या
"महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवारि सुमति के संगी"
भारतीयों का विश्वास टूटा नहीं ये सोचकर किः"
दुर्गम काज जगत के जेते,सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते"
"संकट कटै मिटै सब पीरा,जो सुमिरै हनुमत बलबीरा"
आखिर भारतीय टीम का यश फैला विदेशी धरती पर और सिद्ध हो ही गयाः
"जय हनुमान ग्यान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर"
रुपक

Comments

HI Rupesh,
Bilkul aisa lagg raha hai ki maine hi likhaa hia..sach much meri hi feelings aapke pen(keypad) se niklii hia.
Sach Kangaroos ka ghamand todd diyaa hia humne. Dhoni and his team has proved that to beat the invincible Aussies..couple of STARS are not reqd...but it can be done by team work...when each and every1 knows abt their role in the team and also we have a Plan B and Plan C to back up with the Original Plan A.
Excellent Write Up!!! Keep penning...it seeems your Blog will soon become the talk of the Town. If Aussie Media want then I can translate ur article in English.....
Proud to be an INDIAN:
Harjeet S. Rakhra
viveksengar said…
Dear Rupesh,

Excellent yaar...!!..Bahut accha likha hai, and best thing about this article is that more than a win story it is a win story of truth against ego and fraud. It is like the message of Ramayana "Ashatya par Satya kee Vijay" ..

Keep Writing ..
vivek singh sengar