लगता है ज्यों कल ही खिला था, बंद कली सा जो सिकुङा था ,
पंखुङियों पर पङी ओस पर, चंचल रविकर चमक उठा था,
सात रंग की विभा समेटे माँ के आँचल में सिमटा था ,
वो मेरा प्यारा सा बचपन, पावस सा लुकता छिपता था।
नहीं मिला जब कोई बहाना,मजबूरी थी शाला जाना,
वहाँ पहुँचकर याद किसे घर, बातें,मस्ती, गाना, खाना,
लेकिन कर्कश घण्टी सुनकर , छङी तले पढना पङता था।
वो मेरा प्यारा सा बचपन, पावस सा लुकता छिपता था।
गल्ती की गुंजाईश भी थी,हल्की सी समझाईश भी थी,
तब अंधी घुङदौङ नहीं थी, अपनी अपनी ख्वाहिश भी थी,
ख़्वाब ख़्वाब जैसा होता था, बचपन बचपन सा दिखता था।
वो मेरा प्यारा सा बचपन, पावस सा लुकता छिपता था।
थोङा चुप रहना सीखा था, पङे वक़्त कहना सीखा था,
ज़िद की हद के अंदर हमने धैर्यवान रहना सीखा था,
नाक-जेब संबंधहीन थे, फिर भी मित्रों का जत्था था,
वो मेरा प्यारा सा बचपन, पावस सा लुकता छिपता था।
जन्मजात अब बच्चे धावक, पालक संज्ञा देते "शावक",
"सीखो नहीं" शिकार करो बस, पर पीङा ही तेरा मानक;
भरी भीङ 'रुपक' ने देखा, हर बच्चा था डरा डरा सा।
उम्मीदों की चिलचिल ग़र्मी पावस का उन्माद कहाँ था,
और मेरा प्यारा सा बचपन, पावस सा लुकता छिपता था।
रुपक
Comments
Bahut badhiya ...
great dear.....
Bhaut khoob..keep rocking...best wishesh
"Rajneesh"
Thanks for giving me another beautiful poem to read.
Keep writing. :)
and your Niece is adorable :)
SENTI banaa dete ho :(
Bachpan ki yaad taaza karwaa diye tum......... "aapne apni Klisht hindi aur poetry ke jaadu " se hume hamara aur shayd har insaan ke sab se pyaare dinon ki yaad taaza karwaa diye.
Sach.. bachpan se zyada Pyara kuchh nahi hai...
Keep penning bro.. don't take so much break as u r taking nowadays :)