विडंबना



हमें जिसकी दिल से फिकर है,उसको अपनी कोई कदर नहीं,
जिसे अपनी दिल से फिकर है,उसकी हमें ही कोई कदर नहीं
ये बङी अजीब सी बात है कि वो राह अब तक साफ है,
जहाँ रहगुज़र को सूकून है,जहाँ मुश्किलों की बसर नहीं।
जहाँ शामियाने तने हुए,वहाँ धूप में भी है शाम सी,
पर बेखबर वो उधर गया,जहाँ शाम होती सहर नयी।
जिसे रात लगती है मौत सी,जिसे खौफ लगती है चाँदनी,
डरकर अँधेरे में जा छुपा,कि किसी को आए नज़र नहीं।
जिसे प्यार से नफरत है, जिसको गुरेज़ इश्क के ज़िक्र से,
वही गमज़दा पकङा गया,वही सोया रात भर नहीं।
वो नहीं हुज़ूम पसंद,उसका सुकून आलम-ए-तख्लिया,
मुझे मुस्कराता दिखा था तब, जब उमङ पङा था शहर कहीं।
जो बङे आज़ाद ख्याल हैं, जिन्हें हर रसम पे सवाल है,
उन्हें बस इसी का मलाल है,सभी एक सोच के सर नहीं।
ये नकाबपोश जहान है,हर शक्ल-ओ-शख्स महान है,
यहीं छोङ सारा हिसाब चल,'रुपक'सिफर के सफर कहीं
रुपेश पाण्डेय 'रुपक'

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