ध्वजा थमा दो हाथ में



ध्वजा थमा दो हाथ में शिखर का शंखनाद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
हो रक्त स्वेद भाल में न छल न भेद चाल में ,
कपाल में हो कँपकँपी रहे रुधिर ऊबाल में
निढाल जो पडा मिलूँ उछाल उन्माद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
गरज रहे हों मेघ वेग वायु का प्रचण्ड हो ,
घमण्ड हो सुपात्र का न पत्र,पात्र,दण्ड, हो,
उदण्ड ही मुझे कहो नमन न धन्यवाद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
कदम हो कण्टकों को कण्ठ को गरल वमन मिले,
अगन मिले बदन को मन को लक्ष्य का दमन मिले,
वसन मिले जो मखमली ,पटक के पंक गाद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
टपक रहा हो स्वेद रिस रहा हो रक्त घाव से ,
अलाव से चिपक के चूस लूँ अगन मैं चाव से
जो भाव भक्ति से भरुँ तो कर्म का प्रसाद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
सशक्त हो सके भुजा,सूर्य को ढँके ध्वजा सजा गगन का थाल हो
हो कर्ण भेद शंख का,बजा सकेगा शक्ति से "रुपक" को शंख नाद दो।
ध्वजा थमा दो हाथ में शिखर का शंखनाद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो……
रुपेश पाण्डेय "रुपक"

Comments

Kanupriya said…
this is just too good. the choice of words is awesome! makes me glad to see someone still remembers the words and expressions we were taught in school :)