मज़ा आ रहा है,

पलक दर पलक कुछ नया आ रहा है, 
बदलने दो जीवन मज़ा आ रहा है, 
कभी जो किताबों में किस्से पढे थे, 
पलटते-पलटते, पलटते बङे थे, 
खङे थे कभी जो पहाङों के ऊपर, 
अचानक ज़मीं पर वो औंधे पङे थे,
हद-ए-मोङ पर रास्ता आ रहा है,
बदलने दो जीवन मज़ा आ रहा है। 

कई रास्ते जैसे हों पटरियाँ, 
ई साँप जैसी हैं पगडण्डियाँ, 
बताया हुआ है कोई रास्ता, 
कोई ऎन मौके पे खोजा हुआ, 
कोई ढूँढता ढूँढता आ रहा है , 
बदलने दो जीवन मज़ा आ रहा है। 

लकीरें हथेली पे लिक्खी हुईं, 
लकीरें जो माथे पे सिकुङी हुईं, 
लकीरें कुरेदी हुईं पत्थरों पर, 
लकीरें समंदर पे मिटती हईं, 
लकीरों में हर दायरा आ रहा है, 
बदलने दो जीवन मज़ा आ रहा है,। 

कोई वक्त के साथ चलता हुआ, 
किसी हाथ से वो फिसलता हुआ, 
निकलता हुआ उससे आगे कोई, 
किसी आँख में वक्त ठहरा हुआ, 
हर एक वक्त 'रुपक' तेरा आईना है, 
बदलने दो जीवन मज़ा आ रहा है। 

पलक दर पलक कुछ नया आ रहा है, 
बदलने दो जीवन मज़ा आ रहा है..

रुपेश पाण्डेय'रुपक'

Comments

बहुत बढिया रचना है।बधाई।