मंद हुआ कोलाहल, हालाहल मन में भर बैठा हूँ,
जो समक्ष, वो है सक्षम,वो ही उत्तम,तो मैं क्या हूँ?
चढ आया अब तो सूरज सर, परछाईं तक छोटी है,
अब तक तो थी कानाफूसी,प्रखर बात अब होती है,
हर करतल,हर नज़र पूछती,मैं उसका क्या लगता हूँ?
जो समक्ष, वो है सक्षम,वो ही उत्तम,तो मैं क्या हूँ?
वो चिराग है,वो रोशन है, वो कुल की मर्यादा है,
मान बचाकर गिरवी रखा,वो पुरखों का वादा है,
वो उपनाम सँभाले बैठा, नाम लिए मैं बैठा हूँ,
जो समक्ष, वो है सक्षम,वो ही उत्तम,तो मैं क्या हूँ?
वो जिसके हैं पंख,मगर वो आसमान का कैदी है,
जिसकी खुली उङान वहाँ तक, डोर जहाँ तक जाती है,
उसके कारण पंख समेटे, हरदम वापस लौटा हूँ,
जो समक्ष, वो है सक्षम,वो ही उत्तम,तो मैं क्या हूँ?
वो जिसका असतित्व ज़मीं से जुङा हुआ, जङ से पोषित,
वो जिसका दायित्व मुकुट, संबंधों के नग से शोभित,
उसके राजतिलक में जय करती,लाचार प्रजा सा हूँ,
जो समक्ष, वो है सक्षम,वो ही उत्तम,तो मैं क्या हूँ?
एक बार,बस एक बार ,उसको समक्ष से दूर करो,
एक बार उसको निर्बल,मुझको बल से भरपूर करो,
एक बार अवसर दो 'रुपक' ,दिखलाने का कि क्या हूँ,
नाम समाधि पर लिखना, उपनाम चिता को देता हूँ,
जो समक्ष, वो है सक्षम ,वो ही उत्तम,तो मैं क्या हूँ?
रुपेश पाण्डेय ' रूपक'
Comments
Jitni acchi kavita aur jo photo laga ke rakkhi hain ...dekh ke aatma dravit ho jati hain ... Apni anteratma me kitna veg ho sakta hain ...kaha nehi ja sakta ..
par sachmuch padh ke aankhen geeli ho gayi ..aur samay tham gaya ..
Bas aise hee likhte raho dost ...
All the best ..
keep it up man.. u r on my RSS feed now..