'फर्स्ट इम्प्रेसन इज लास्ट इम्प्रेसन'


'फर्स्ट इम्प्रेसन इज लास्ट इम्प्रेसन' इसी जुमले को बार बार उछाल कर प्रचार किया गया था 'टशन' का,अब प्रतीत हो रहा है कि ये जुमला इन पर ही भारी पङ गया, जिस तरह से फिल्म के प्लाट को गुप्त रखा गया और रफ टफ छवि वाले प्रोमो दिखाये गये वो उत्सुकता जगाने के लिये काफी थे , किंतु यशराज बैनर का गणित फिर गङबङा गया, 'झूम बराबर झूम' की तरह 'टशन' भी बनी तो बङी आकर्षक, किंतु न तो कहानी थी न ही लय, संक्षेप में बोला जाए तो 'आत्माहीन सौंदर्य' या 'स्वादरहित माधुर्य' यदि मोहित कर सकते हैं तो मनोरंजन की द्रष्टि से कोई कमी नहीं है।
यशराज बैनर या अन्य बैनर की पिछली कुछ फिल्मों पर गौर किया जाए तो कहा जा सकता है कि उत्तर भारत के छोटे शहरों की जीवनशैली पर काफी अच्छा अध्ययन किया गया है, और काफी हद तक परदे पर सटीक चित्रण करने में सफल भी रहे हैं फिल्मकार,'लागा चुनरी में दाग' 'आजा नच ले' 'मनोरमा 6ft अंडर' 'ओंकारा' जैसे कुछ उदाहरण सामने हैं, फिर प्रकाश झा तो हमेशा से ही छोटे शहर की प्रष्ठ भूमि पर फिल्में बनाते आये हैं,बाज़ार का गणित, कहानी में नयापन,बढता दर्शक समूह कुछ कारक हैं इस परिवर्तन के।
वापस आते हैं 'टशन' पर,कहानी वैसे तो कुछ है नहीं और जो कुछ भी है,वो बताकर देखने वालों की उत्सुकता क्यों कम की जाये, बात करते हैं प्रदर्शन की, आज से 10-12 साल पहले जब सैफ और अक्षय की जोङी आयी थी 'मैं खिलाङी तू अनाङी' में तब के अनाङी सैफ इतने सालों बाद भी अभिनय में अनाङी ही नज़र आये, वैसे उनके कॉल सेंटर के कॉस्मोपॉलिटन चरित्र के लिये ज़यादा स्कोप भी नहीं था किंतु शून्य में भी संभावना कैसे ढूंढी जाती है ये सीखना है तो अक्षय से,साधारण से द्रश्य को अपने टच से कैसे असाधारण बनाया जाता है अक्षय इसकी मिसाल हैं, एक्शन किंग से कॉमेडी किंग तक का सफर बखूबी तय करने वाले इस कलाकार ने एक्शन और कॉमेडी तो निभायी ही डांस मे सैफ छोङो करीना तक को मात दे दी, 'व्हाईट व्हाईट फेस....' गाने में इनका ये पहलू भी खूब उभरकर आया, कुल मिलाकर अक्षय ने 100% दिया और बेशक 200% हासिल करेंगे, जहाँ तक करीना की बात करें तो फिल्म दर फिल्म उनके अभिनय में कमाल का आकर्षण आता जा रहा है, शारीरिक आकर्षण तो हमेशा से ही उनका मज़बूत पक्ष रहा है, यहाँ पर दोनों ही प्रतिभायें सामने आयीं,अनिल कपूर ने हास्य के क्षेत्र में हाथ आज़मानें शुरू किये और कुछ हद तक सफल भी रहे किंतु यहाँ मात खा गये,आधे संवाद तो समझ ही नहीं आते और जो आते हैं बेझिझक PJ की श्रेणी में रखे जा सकते, गाने काफी अच्छे बन पङे हैं और द्रश्यांकन बेहतरीन है।
कुल मिलाकर टुकङों टुकङों में फिल्म ठीक ठाक बन पङी है पिज़्ज़ा की तरह,पिज़्ज़ा जो डिलीवर हुआ 180 minutes में।
रूपक

Comments