भभक उठा जो क्रोध,भस्म हो गयी मति,सती हुई विमर्श की विरल विडंबना।
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
घमण्ड है प्रचण्ड,मुण्ड दर्प सर्प कुण्डलित,
लोभ,मोह,प्राप्ति से हो रहे नयन ललित,
शुचित लगें सभी उपाय राय की ग़रज नहीं,
गरज रही है 'एक-क्षत्र राज्य' की ही कल्पना।
भभक उठा जो क्रोध,भस्म हो गयी मति,सती हुई विमर्श की विरल विडंबना।
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
चक्षु का अनल,स्वजन को देखकर,धधक रहा,
कथन से 'नीति','सत्य','व्रत' के;अग्नि घ्रत,भङक रहा,
उचक रही उद्दण्ता,पावसी-मण्डूक सी,
शौर्यहीन कर रहा है "युद्ध-युद्ध" गर्जना।
भभक उठा जो क्रोध,भस्म हो गयी मति,सती हुई विमर्श की विरल विडंबना।
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
लो प्रहार कर दिया, तार-तार कर दिया,
"मैं अजातशत्रु" सबको ख़बरदार कर दिया,
भर दिया ज़हर,उमर के बरग़दी लगाव में,
घाव में उतार आया पीढीयों की वेदना।
भभक उठा जो क्रोध,भस्म हो गयी मति,सती हुई विमर्श की विरल विडंबना।
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
देखकर पयोधि,दंभ फूट-फूट रो पङा,
कुटैव में भसम हुआ,किसी को फ़र्क क्यों पङा?
सकल निशा वो ताकता रहा तरंगरोह को,
अस्थि पुष्प बह गये, बहा न पुष्प प्रेम का।
'रुपक' कटूक्ति त्याग,अब तालाशता प्रियंवदा।
रुपक
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
घमण्ड है प्रचण्ड,मुण्ड दर्प सर्प कुण्डलित,
लोभ,मोह,प्राप्ति से हो रहे नयन ललित,
शुचित लगें सभी उपाय राय की ग़रज नहीं,
गरज रही है 'एक-क्षत्र राज्य' की ही कल्पना।
भभक उठा जो क्रोध,भस्म हो गयी मति,सती हुई विमर्श की विरल विडंबना।
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
चक्षु का अनल,स्वजन को देखकर,धधक रहा,
कथन से 'नीति','सत्य','व्रत' के;अग्नि घ्रत,भङक रहा,
उचक रही उद्दण्ता,पावसी-मण्डूक सी,
शौर्यहीन कर रहा है "युद्ध-युद्ध" गर्जना।
भभक उठा जो क्रोध,भस्म हो गयी मति,सती हुई विमर्श की विरल विडंबना।
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
लो प्रहार कर दिया, तार-तार कर दिया,
"मैं अजातशत्रु" सबको ख़बरदार कर दिया,
भर दिया ज़हर,उमर के बरग़दी लगाव में,
घाव में उतार आया पीढीयों की वेदना।
भभक उठा जो क्रोध,भस्म हो गयी मति,सती हुई विमर्श की विरल विडंबना।
रक्त रक्त हो गया,विधी विरक्त हो गया,प्रहार के, संहार के, श्रंगार में है संजना।
देखकर पयोधि,दंभ फूट-फूट रो पङा,
कुटैव में भसम हुआ,किसी को फ़र्क क्यों पङा?
सकल निशा वो ताकता रहा तरंगरोह को,
अस्थि पुष्प बह गये, बहा न पुष्प प्रेम का।
'रुपक' कटूक्ति त्याग,अब तालाशता प्रियंवदा।
रुपक
Comments
One more thing.. I am improving my hindi in notches in ur company ( I know the meaning of 'Chakshu" ..though, thanxx to my Hindi teacher)
Hey Rupesh... WHat abt "Sandarbh","Prasang" and "Bhawarth" of ur Kavitas for a poetry-ignorant but avid follower of Rupak like me?? Worth a shot???
Anyhow.... keep penning ... and yes.. U r better than many of those "Self proclaimed poets"... Apna bhi din aayegaa chote... :)