क्यों इतने बेचारे हम?


कभी शराफ़त, कभी मुसीबत,
कभी वक्त़ के मारे हम,
क्यों इतने बेचारे हम?

उहापोह
में फँसे,धँसे उस मोह में जिसका ग्यान नहीं;
कहीं किये समझौते अगणित,बिके कहीं सम्मान नहीं,
बिफरे-बिफरे फिर भी झेलें,थू-थू की बौछारें हम,
क्यों इतने बेचारे हम?

जोख़िम
के डर,हार की दहशत,बदनामी की सिहरन में,
चले वही पथ,जहाँ "ग़नीमत" ;'स्वप्न','श्वास','स्पंदन' में,
जन-समूह में हाथ उठा अब "देखो मुझे" पुकारें हम,
क्यों इतने बेचारे हम?

क्रोध कर दमन,नीलकण्ठ मन,मुख-मण्डल पर शांति विभा,
नग्न प्रदर्शन,है भौंडापन,सीखो 'लज्जा' की प्रतिभा,
दहके भीतर ,हाथ भींचकर, निर्जीवों पर मारें हम।
क्यों इतने बेचारे हम।

परंपरा,परिवार बेङियाँ,संस्कार के हैं ताले,
"कब तक औंधा पङा,इन्हीं का नाम जपेगा रस्साले!!",
आसमान की चाह में पिचके गैस भरे ग़ुब्बारे हम,
क्यों इतने बेचारे हम।

चेहरा लटक पैर तक पहुँचा,चाल अधमरी अनमन सी,
कहीं गंदगी पैठ गयी है, 'चोक' कर रही अङचन सी,
'रूपक' ज़रा ज़ोर तो मारो,झेंलेंगे फ़व्वारे हम,
क्या इतने बेचारे हम?
'रुपक'

Comments

एम० ए० डी० सार्थक किया मुझ पे पड़ा प्रभाव।
इस रचना का मूल है सतत जगरण भाव।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
sleepingghost said…
am happy that this one atleast I can decipher...liked the last one specially rupak jara zor to maaro...rest we will discuss this over gtalk...;-)
ashit said…
"Jokhim ka darr, haar ki dehshat..."
Bingo!!!
Way to go Kaviraaj!!