चटकती चट्टान,चिल-चिल चमकती चिंगारियाँ,
धधकती सी धूप , धूल-धूसरित सी धारियाँ,
चिङचिङा सुनसान रस्ता बङबङाने लग गया,
ग़र्म मौसम धूल से साज़िश रचाने लग गया,
बूँद वाले बारिशी गीले ग़लीचे बिछ गये।
फ़र्ज़ में बाँधा बङप्पन बचपनाने लग गया।
आँख के मोती छिटककर बूँद बारिश बन गये,
बेबसी के बहाने फिर छतरियों से तन गये,
सोच का 'आवारापन' जब सर उठाने लग गया,
फ़र्ज़ में बाँधा बङप्पन बचपनाने लग गया।
कोरी मिट्टी की महक या बजबजाती नालियाँ,
मूसलों सी धार छप्पर पर बजाती तालियाँ,
भद्र,समुचित,संतुलित जब बङबङाने लग गया,
फ़र्ज़ में बाँधा बङप्पन बचपनाने लग गया।
भीग जाने की ख़ुशी,कुछ याद आने की ख़ुशी,
ख़ुद-ग़रज में बुना पिंजङा टूट जाने की ख़ुशी,
ज़िंदगी के गीत 'रुपक' फिर सुनाने लग गया,
फ़र्ज़ में बाँधा बङप्पन बचपनाने लग गया।
रुपक
Comments
farj me bandha baddappan bachpnane lag gaya..
Too Good
It's real life scenario..comes in life almost for every one..
Regards,
Rajneesh Shukla
1) Expecting half day school
2) Driving my cycle through water-logged roads.
Latter gave so much happiness that is incomparable till date. Thanxx for making me NOstalgic Rupak... Carry on gud work. And don't go into such a big slomber as ur duffers Guru and Mahaguru.