चलो कमबख़्त हो जायें


हकीकत मार लेती है , चलो कमबख़्त हो जायें,
जताकर प्यार 'लेती है' , चलो कमबख़्त हो जायें।

हाँ अक्सर 'खूँ' में खौले हैं , शहादत के कई किस्से,
'बनो तारीख़', ऐसी सीख देते , सुरमयी किस्से,
मेरे मक़सद की खिङकी पीट आये फिर वही किस्से,
हमें कर ज़ार देती है , चलो कमबख़्त हो जायें।
हकीकत मार लेती है , चलो कमबख़्त हो जायें,
जताकर प्यार 'लेती है' , चलो कमबख़्त हो जायें।

हमें इन सा नहीं बनना, ये कीङे हैं मकोङे हैं,
हमें इनसाँ नहीं बनना, कई ऐसे निगोङे हैं,
पपीहे प्यास वाले हम, हाँ दरिया हमने छोङे हैं,
नदी दुत्कार देती है, चलो कमबख़्त हो जायें,
हकीकत मार लेती है , चलो कमबख़्त हो जायें,
जताकर प्यार 'लेती है' , चलो कमबख़्त हो जायें।

जी हाँ कुछ नाम लिखे हैं, बुतों,सङकों,मज़ारों पे,
चढे है सूलियों पर,कुछ गङे ज़िंदा दीवारों में,
मगर एक टीस रिसती है, वो पत्थर की दरारों में,
बना अख़बार देती है,चलो कमबख़्त हो जायें।
हकीकत मार लेती है , चलो कमबख़्त हो जायें,
जताकर प्यार 'लेती है' , चलो कमबख़्त हो जायें।

किया हासिल तो फिर क्यों,सिलवटें क़ायम हैं माथे पे,
समाते हाथ में कुछ ही, खुशी गिर जाती लाते में,
नज़र भर हमने लूटी चाँदनी अपने आहाते में,
ये 'रुपक' की चहेती है,चलो कमबख़्त हो जायें,
हकीकत मार लेती है , चलो कमबख़्त हो जायें,
जताकर प्यार 'लेती है' , चलो कमबख़्त हो जायें।

रुपक

Comments

Udan Tashtari said…
बहुत खूब!!
RAJNISH PARIHAR said…
आज की सच्चाई उकेरती एक अच्छी रचना.....
Rajneesh said…
sahi kah rahe ho imandari ko aaj kal murkhta ka paryay samjha jane laga hai :) bahut khoob keep it up.