लो झंडु बाम हुए,बाबरी* तेरे लिये..


कुछ भी नहीं हुआ,कभी-कभी कुछ न होना भी पीङा देता है,मीडिया और सरकार ने आशंका का ऐसा वातावरण बना दिया कि कुछ न होना सालने लगा,भारत-पाकिस्तान के विश्व कप फाईनल जैसा रोमांच था,दफ्तर खाली,सङकें खाली स्कूल बंद,टी वी पर चिपके लोग,रोमांच का चरम,धैर्य की परीक्षा,प्रतीक्षा की पराकाष्ठा....और कुछ नहीं हुआ, विवादित की बंदर बाँट में सारे बंदर 'V' बानाकर नाचने लगे,कहीं किसी पेङ पर बैठे 'राम लखन सीता मन बसिया' खिसिया अवश्य गये होंगे विचित्र व्यवहार से।
सभी याचिकाकर्ता ३३ प्रतिशत अंको से उत्तीर्ण हो गये कोई मेधावी न रहा,समरसता ने नीरसता को जन्म दिया और नीरवता पंख फैलाने लगी,कुल मिलाकर कुछ भी नहीं हुआ।
राजनीति में मुर्दे उखाङने के लिये ही गाङे जाते हैं,मुखर क्रांतिकारी संयमित प्रतिक्रिया दे रहे हैं,उनका मन मुर्दों के पुनर्जन्म की उधेङबुन में लगा है,मुर्दा जो जब क़ब्र से निकलेगा अपने साथ सैकङों को लेकर जायेगा,ज़मीन के नीचे   इमारत के अवशेष हैं और दिमाग के नीचे मुर्दों के,भूमिगत खण्डहर पढे जा सकते हैं,जातिगत खण्डहर नहीं;
कुछ हास्य मिश्रित प्रतिकार रस वाली प्रतिक्रियाऐं बाँटने का मन कर रहा है "यदि अजमल क़सब ताज में क़ब्ज़ा करके 300  वर्ष तक उपासना करता रहे तो क्या ताज उसका हो गया?" "बाबर को हम अपना पूर्वज नहीं मानते वो एक बर्बर शासक था और बहुत सारे धर्म विरुद्ध कार्य किये" ( सोर्सः विभिन्न चिठ्ठो पर प्काशित टिप्पणियाँ)
एक जिम्मेदार और सर्वाधिक प्रचलित अंग्रेज़ी समाचार पत्र की हेडलाईन थी " विवादित भूमि का दो हिस्सा हिंदुओं का एक हिस्सा मुस्लिम का" फैसला आने से अब तक यही एक ऐसी लाईन थी जो चीख-चीख कर उकसा रही थी "कुछ भी नहीं हुआ..कुछ तो हो"
"जनता समझदार है"सब यही बोलते दिखे, और मुँह मे माईक ठूँसकर पूछे कई सवाल,सारे सवालों का भावार्थ एक ही था"आपको गुस्सा नहीं आ रहा है? नहीं तो क्यों नहीं? कब आयेगा गुस्सा?आना तो अवश्यंभावी है , देखते हैं कैसे नहीं आयेगा़!!"
स्वप्न और रोमांच नीरस जीवन में चटखारा लगाते हैं,भारतवर्ष समारोह का आदी होता जा रहा है,समारोह प्रसन्नता का हो या विषाद का,कर्मठता का या उन्माद का,स्वयं का या पङोसी का, कुछ होना चाहिए,कुछ न होना सालता है,नीरसता डसती है,आत्मंथन करवाने लगती है,स्वयं की किसे पङी है,अपने बारे में कल भी सोच लेंगे,या अगले जनम में, आज तो गाते हैं:
 

हिस्सों मे राम हुए,बाबरी* तेरे लिये,
लो झंडु बाम हुए,बाबरी तेरे लिये,
 

हिस्सों के ठाट नवाबी,शोर-शराबी,इंक़लाबी रे,
हँस के हज़्ज़ाम हुऐ,बाबरी तेरे लिये,
 

लो झंडु बाम हुए,बाबरी तेरे लिये,
'रुपक'

(*क्रपया बाबरी का शाब्दिक अर्थ न लें,यहाँ तात्पर्य विवादित स्थल से है,यह तटस्थ पोस्ट है और किसी पक्ष का समर्थन नहीं करती,पढें और निर्धारित करें।)

Comments

न राम कुछ खाने को देगा, न अल्लाह .......... और जो दे सकता है वो दे नहीं रहा है...चाहे सड जाये
sleepingghost said…
कोई भी घटना नहीं हुई, देख के अच्छा एवं बुरा दोनों लगा, पर खैर सांत्वना पुरस्कार सबको देके शांत कर दिया गया है. झंडू बाम बेहद पसंद आया. अब तो राजनीति भी झंड हो गई है.

उपद्रवी आशु.
Saleem Khan said…
babri tere liye !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
LOL.. The roads here in HYD yesterday were deserted somewhere around 3 PM :) I njoyed to the tee.. Vacant Road I mean!!! :)

The day u have written these words on reply to my mail, I knew something BIGGER would be coming from ur side. And I was not wrong :)

Liked the post very much. Wish u write these kinda posts as frequently as u pen poetries.

All d best!! Wud take a print out of this and would read infront of hindi speaking friends and my family members too :)
Shekhar said…
your prose is as good as your poetry... well written... media dosen;t realize that for peace you need not shout... peace remains unheard in this cacophony
Jiten... said…
Chhaa Gaye Rupa!!!Beta kab se intejar tha tere is blog ka aakhir aa hi gaya.."Jhandu bam Ban ke"...
Rupesh Pandey said…
@banti-very true
@ashu-rajniti hamesha se jhand thi ab interesting bhi nahi rahi
@HSR-thanks a lot
@shekhar-good you liked this,
thanks jitu.