कम शब्दों की, संकेतो की, जीवन-दर्शन की पोथी,
हर अनुभव का सार समेटे, 'हाँ' 'हम्म' 'अच्छा' 'ख़ामोशी'।
जो रिश्ता माटी-कुम्हार का,
कुशल वैद्य का रोगी से,
अभ्यासों का जो धावक से,
और साधक का योगी से;
भोगी को विलास की जब भी,
अंधी आसक्ति होती,
उचित मार्ग पर त्वरित पटकती,
'हाँ' 'हम्म' 'अच्छा' 'ख़ामोशी'।
माँ का आँचल छाया शीतल, सोपानों की धूप पिता,
ममता मरहम मन का, तन के कवच स्वरूप पिता
जिता-जिता कर जिसकी आंखे, एकाकी ही नम होती,
विजय-पर्व में भी जो कहती, 'हाँ' 'हम्म' 'अच्छा' 'ख़ामोशी'।
माँ की सुध हर क्षण में होती,
और पिता की उलझन में,
यौवन का विद्रोही समझे,
उनको ढलते यौवन में
जीवन के बढ़ते-बढ़ते,
बढ़ती जिसके तप की ज्योति,
शब्दकोश में ढल जाती फिर,
'हाँ' 'हम्म' 'अच्छा' 'ख़ामोशी'।
सरल हिमालय चढ़ जाना, मन-मेरु चढ़ना बहुत कठिन,
संबोधन सहस्त्र से करना, पिता से करना बहुत कठिन,
तुहिन कणों को दिनकर से मिलकर जो अनुभूती होती,
'रूपक' मौन हो तो पढ़ लेना, 'हाँ' 'हम्म' 'अच्छा' 'ख़ामोशी'।
रूपेश पाण्डेय 'रूपक'
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