धवल योद्धा

कुंठा के नैराश्य कूप में, 
पुंज प्रकाशित प्रबल योद्धा
मनुज रूप में देवतुल्य सा,
दीनदयालु धवल योध्दा।

मानवता के मूर्त रूप को,
कदम ताल करते देखा है,
हाँ मैनें भी श्वेत वस्त्र में,
जीवन को चलते देखा है।

देखा है मादक रातों का,
सहसा मर्मांतक हो जाना,
निज-विलास से ऊपर उठकर,
मानव का रक्षक हो जाना;
भय के भीषण अंधकार में,
दीप-ज्योति सा अटल योद्धा।
मनुज रूप में देवतुल्य सा,
दीनदयालु धवल योध्दा।

लोभी, मोही, दर्पी, द्रोही, 
चरणों में गिरते देखा है;
पश्चतापी अश्रु-धार से,
गागर को भरते देखा है।

देखा है उस अंतिम क्षण में,
अहं ब्रह्म का भ्रम खो जाना,
निज-सत्यापित शार्दूलों का,
नयन झुकाये मृग हो जाना;
भेद-भाव से परे समर्पित
पर पीड़ा में सजल योद्धा।
मनुज रूप में देवतुल्य सा,
दीनदयालु धवल योध्दा।

शावक के नख-दन्त,
विषधर के विष को चढ़ते देखा है,
रोगी के आरोग्य चरण में,
दम्भ दग़ा करते देखा है।

देखा है उन कम्पित हाथों को,
सहसा बाहुबली बन जाना,
कूबड़ काढ़े कर-बद्दों का,
अकड़-अकड़ लड़ना तन जाना;
यश-अपयश से परे हैं 'रूपक'
सतत, समर्पित, सफल योद्धा।
मनुज रूप में देवतुल्य सा,
दीनदयालु धवल योध्दा।
©रूपेश पाण्डेय 'रूपक'

Comments