न भूतो, न भविष्यति, था ये ऐसा साल

Keyboard पर बेतहाशा refresh key दबाने के बाद भी जब स्क्रीन फ्रीज़ हो गयी तो मज़बूरी में उसे restart किया, आज्ञाकारी operating system ने आंशिक विश्राम पर जाने के पूर्व भी पूछा कि "क्या मैं 3 सप्ताह पहले open की गई फ़ाइल सुरक्षित करना चाहूंगा ?" तब ध्यान आया कि इस निर्जीव पर एक माह से लगातार अत्याचार जारी था, आंशिक 5 minute का restart वाला break भी नहीं मिला था बेचारे को, 'restart anyway' करके आवासीय कार्यालय कक्ष से बाहर आ गया और चाय का कप लिए खुली हवा में क्षितिज पर 2020 के अंतिम सूर्यास्त को निहारने लगा।

एक साल पूर्व जब 2019 में हम ऐसा ही सूर्यास्त देख रहे थे तब शायद अनुमान भी नहीं था कि हम सदी के सबसे विरले वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, हालांकि महामारी की प्रारंभिक खबरें तो आने लगी थी, किन्तु हम वैसे ही निश्चिन्त थे जैसे हम अक्सर रहते हैं, भविष्य और वर्तमान के लिए चिंतित और भौतिकतावाद से mypopic. 79 ईसवी में सम्रद्ध रोमन साम्राज्य का pompeii भी vesuvis ज्वालामुखी से ऐसा ही अनजान रहा होगा, किन्तु मानवीय प्रवृत्ति की विशेषता है परिस्तिथियों से तारतम्यता, श्मशान में उपजे वैराग्य की भाँति धीरे-धीरे फिर सब सामान्य हो जाएगा, और जो लोग इस वर्ष से सकुशल पार पाने में सक्षम रहे, उनमें से अधिकांश फिरसे उसी भौतिकतावादी पर्तिस्पर्धा में खप जाएंगे, जो कि एक सहज और नैसर्गिक मार्ग है।

हमारी संस्कृति 'अतिथी देवो भव:' का बड़ा महत्व है, हर वर्ष हम नए साल को गले लगाकर स्वागत करते हैं, और जाने वाले वर्ष के लिए भावुक होते हैं, ऐसा शायद पहली बार हो रहा है कि इस वर्ष को 'भाड़ में जा 2020' कहकर विदा किया जा रहा है, मुझे लगता है कि कुछ दशकों बाद शायद हम इस वर्ष के प्रति अधिक कृतज्ञ रहेंगे, क्योंकि इसने हमें असहज किया, सभी को कुछ ऐसा करने को विवश किया जो हमारी सीमित सोच से परे था, हमारी सुविधापूर्ण मानसिकता से परे था, फिर वो चाहे स्वछता के प्रति बलपूर्वक लायी गयी सजगता हो, नई तकनीक सीखने की मजबूरी हो, घर बैठकर परिवार विशेषरूप से बच्चों से बनाई गई निकटता हो, बेवजह घूमने-फिरने और सोशल मीडिया पर उसका प्रदर्शन करने से बचाव हो, घर का काम-काज सीखने समझने और करने की मजबूरी हो, माता-पिता के साथ बिताया गया उपयोगी समय हो, बहुत कुछ ऐसा हुआ जो शायद 2020 में ही हो सकता था। जैसे-जैसे परिस्थितियां सामान्य होती जाएगी हम फिरसे पुराने ट्रैक पर भागना शुरू कर देंगे, शायद हम और तेज़ी से भागना चाहेंगे ताकि अब तक आयी कमी को भरा जा सके, इससे पहले कि हम उस दौड़ में फिर शामिल हों।

आने वाले कुछ महीने उस दौड़ की तैयारी के हैं, साथ ही यह सोचने के भी हैं कि क्या हमें फिरसे वहीं से शुरू करना है ? फिरसे उतने ही दृष्टिबाधित और स्वार्थपूर्ण तरीके से ?

Covid  की ख़बरों में तो अब उतनी रुचि नहीं रही जैसी  की शुरुआत में थी जब हर दिन संख्या गिनकर भारत की रैंकिंग देख रहे थे, किन्तु सहसा दृष्टि पड़ी एक लेख पर, जहां बताया गया था कि कैसे vaccine बनाने के लिए कुछ प्रयोगों में शार्क मछली की लिवर से निकलने वाले तेल का प्रयोग किया जाएगा, और सफल होने पर लाखों शार्क मछलियों को मार दिया जाएगा, ताकि हम सुरक्षित रह सकें, पर्यावरण से यह खिलवाड़ कोई नया नहीं, पृथ्वी तो इस सौर मंडल में करोडों वर्ष से विद्यमान है, लाखों जीवों की भांति मनुष्य भी एक जीव ही है, और मनुष्य जाति का इतिहास बमुश्किल 10 हज़ार वर्ष पुराना है, जो करोड़ों वर्षों का बहुत ही छोटा हिस्सा है, उसमें भी अधिकांश समय मनुष्य ने प्रक्रति के साथ सहअस्तित्व के सिद्धांतों को माना, विज्ञान की क्रांति पिछले 500 वर्षों में ही आयी, और महज 500 वर्षों में हमने प्रकृति को इतनी हानि पहुंचायी जो करोडों वर्ष के अस्तित्व पर संकट बन गयी, खैर अपने को इतना सक्षम और बलशाली मानने वाला मनुष्य पृकृति के एक छोटे से विषाणु के आगे घुटनों पर बैठ गया, इससे पता लगता है कि प्रकृति तो अपना सामंजस्य बना ही लेगी, किन्तु अपने अहम और अंधाधुंध घमंड में चूर मनुष्य यदि अभी भी नहीं चेता तो शायद अगले 100-200 वर्षों में कोई और प्रजाति या जीव हमारे अस्तित्व को समाप्त कर देगा, और अपने सारे विज्ञान के ज्ञान के साथ भी हम सिर्फ हाथ मलते रह जाएंगे।

लैपटॉप restart हो गया और मै वापस अपने काम में जुट गया, इस वादे के साथ कि सही समय पर restart करना जारी रखूंगा।

न भूतो, न भविष्यति था ये ऐसा साल

नए दशक का शुभारंभ है, अब न रहे मलाल।

है ब्रह्मांड अनंत,अपरिमित, पृथ्वी बस एक कण


उस कण के सहस्त्र जीवों में हम हैं मनुज कृपण,

कोटि-कोटि वर्षों में, कुछ सौ सालों का वर्चस्व,

उस पर इतना अहम, स्वयं को समझें हम सर्वस्व।

घुटनों पर आ गिरे, प्रकृति ने ज़रा फुलाया गाल

न भूतो, न भविष्यति था ये ऐसा साल,

नए दशक का शुभारंभ है, अब न रहे मलाल।


जैसे एक हठी बालक की ज़िद माता सहती है,

किन्तु सनद में उसके हित की चिंता ही रहती है,

धरती भी कालांतर में यूँ चेताती रह-रह कर,

फिर उद्दंड कृत्य पर करती वार क्रोध को सहकर।

त्रुटियों से लो सीख कि, संकट आये नहीं अकाल

न भूतो, न भविष्यति था ये ऐसा साल,

नए दशक का शुभारंभ है, अब न रहे मलाल।


हम मनुष्य एक जीव, हज़ारों जीव हैं इस धरती पर,

चक्र समय का तीव्र करो न, सह-अस्त्तित्व भुलाकर,

निज मति का उपयोग अनर्थक दोहन में कर लेना,

लेन-देन के नियम ध्यान में रखकर कुछ डर लेना,

वापस तो लेगी प्रकृति, 'रूपक' यह रहे ख़याल।

न भूतो, न भविष्यति था ये ऐसा साल,

नए दशक का शुभारंभ है, अब न रहे मलाल।



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