59घण्टे,Final-Assault,'Operation-Tornedo',NSG,Deccan-Mujahiddin,Taj,Tridant, Nariman,आतंकवादी/वाद,हमला,लापरवाही,...सुर्खियाँ,सुर्खियाँ,सुर्खियाँ,...
लांछन,आक्रोश,बैचेनी,क्रोध,विजय,गर्व,...भावनाएं,भावनाएं,भावनाएं,...
ये तीन दिन एक समारोह से हो गये, कोई सरकार की लाचारी पर रोया, कोई खुद की, कहीं भावनाएं उद्वेलित हुईं, कहीं प्रस्फुटित , कहीं वयस्क , कहीं उद्दण्ड। भद्र ,अभद्र बन गये, अभद्र , हिंसक और हिंसक , फिदायीन।विजय की घोषणा के साथ फिर वही मायूसी, "क्या??" "कुछ नहीं"
गौर किया तो पाया हम तो दर्शक दीर्घा में ही थे, वहीं रह गये,भारत इंग्लैंण्ड को पाँचवी बार हरा चुका था, हमें जश्न की बदहज़मी हो चली थी,'हाज़मे की गोलियाँ' खाने का वक्त था कि 'हादसे की गोलियाँ' दिखाई देने लगीं , फेविकॉल लगाकर चिपक गये 'बुद्धु बक्से' के सामने, चाय की तलब हुई, कुछ खाने को निकाल लिया, चेहरा पके पपीते सा हो गया , अब टपका कि तब टपका,खा पीकर सो गये, उठे तो दिन नया-२ सा लगा, उत्सुकता,क्या हुआ? देखें ज़रा। चाय की चुस्कियाँ बदस्तूर जारी...
कभी कभी आश्चर्य होता है अपनी क्षमता पर, कहाँ से जुटा लाते हैं हम इतना ग्यान ?? जो कल तक समझा रहे थे कि 'रोहित शर्मा को कैसे खेलना चाहिये, और तेंदुलकर कहाँ गल्ती करता है', आज उन्होंने कैफेटेरिया को 'जंग का रणनीति हॉल' बना डाला, कोई पूरे होटेल को डायनामाईट लगाकर उङाने की सिफारिश करता रहा, कोई 'मुसैड्स' की शान में कसीदे पढने लगा, किसी का गुस्सा निकला संप्रदाय पर और किसी का राजनेताओं पर,
चाय के हर घूँट के साथ गुस्से का एक ग़ुबार निकल जाता, फैल जाता फिज़ाँ में , बना लेता बादल किसी दूसरे ग़ुबार के साथ, टकरा जाता किसी भावनाशून्य चेहरे से बरस जाता बनकर आँसू, बङा वाला डस्टबीन आज लंच के पहले ही भर गया चाय-कॉफी के डिस्पोज़्ड कप्स से , डस्टबीन भरने की प्रक्रिया में लगे बुद्धिजीवियों के परिश्रम से अनजान बेवकूफ Office Boy उठा ले गया भावनाओं की ये खेप,ताकि नये प्लान बनाये जा सकें , नयी नसीहतें, नया ग़ुबार, नये बादल ,और कुछ बूँद बेबस आँसू...
माना कि कहानी में नयापन था, लेकिन बर्दाश्त की भी हद होती है, हमने तो सोचा था कमाण्डोस हैं तो थोङा Adventure होगा, याद आ गई हालिया पर्दशित फिल्म 'हीरोज़' अपाहिज़ 'सन्नी देओल' अपनी मुठ्ठियों से ज़मीन के परखच्चे उङाता जाता है,एक भी वैसा एक्शन नहीं, सारे '*#@%' भी ख़त्म हो चले दिमाग की नसें ऐंठ चुकी थीं, उत्तेजना में बेशक़ 'हाई' हुये हम , सॉलिड 'किक' लगा़! पर अब मज़ा नहीं आ रहा था, बाकि चैनल्स अब तक हङताल पर थे, थक हार कर वही आसरा, कोई मूवी, 'दसविदानिया' पिछले 'दस' दिनों से अपने दर्शक का इंतज़ार कर रही थी, 'आवारा राही ग़ुमशुदा...' चाहता था एक हाई 'किक' एक चुनौती, मानसिक उत्तेजना,और वो मिली, वाह!मज़ा आ गया!
कुछ चीज़ें अटल होती हैं, जैसे चाय की चुस्कियाँ, हमारा दर्शक दीर्घा में होना, नये नये तमाशे आयेंगे, ये चमत्कारों वाला देश है, ये हर विषय में महारती है, क्रिकेट से प्यार है, लेकिन "आरूषि हत्या काण्ड" की फिक्र भी, अपने किचन के साथ साथ 'बिग-बॉस' का भी किचन सँभालता है,इसने संसद में उछले नोटों के बण्डल भी देखे और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ,दिल्ली के एक्ज़िट पोल भी, 'बुद्धु बक्सा' सब दिखाता है,
"लेकिन कुछ चीज़ें अटल होती हैं, जैसे चाय की चुस्कियाँ, और हमारा दर्शक दीर्घा में होना, नये नये तमाशे आयेंगे, ये चमत्कारों वाला देश है, ये हर विषय में महारती है.....
अगली सुबह ख़ुमारी थी,' पता चला हम जंग जीत गये, मो.रफी,लता के 'वतन' वाले गाने बज रहे थे , माहौल में ताज़ापन था, चाय का स्वाद बढ गया,कुछ Pro Active Channels घटना की चीर-फाङ में लग गये, क्या, क्यों,कैसे,कब तक, ...प्रश्न,प्रश्न,प्रश्न????; '
सहसा 'दसविदानिया' याद हो आई, लगा देश की हालत 'कौल' ('विनय पाठक') जैसी हो गई है, दबंग दुनिया,बॉस की सी सवाल कर रही है "क्या!!!!"और जवाब है "कुछ नहीं"। क़ाश की कोई ऐसा डॉक्टर मिलता जो देश को बता पाता कि उसका 'कैंसर' 'लास्ट स्टेज' पर पहुँच चुका है, क़ाश कि हम भी सोच पाते "10 Things to Do Before We Die..."
ध्वजा थमा दो हाथ में शिखर का शंखनाद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
हो रक्त स्वेद भाल में न छल न भेद चाल में ,
कपाल में हो कँपकँपी रहे रुधिर ऊबाल में
निढाल जो पडा मिलूँ उछाल उन्माद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
यहाँ जायें
'रुपक'
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
हो रक्त स्वेद भाल में न छल न भेद चाल में ,
कपाल में हो कँपकँपी रहे रुधिर ऊबाल में
निढाल जो पडा मिलूँ उछाल उन्माद दो,
कहो न मुझको धीर तुम अधीर शब्द लाद दो।
यहाँ जायें
'रुपक'
Comments
thoughtful writing-
-देश के लिए शहीद होने वालों को मेरा सादर नमन है.
I dont have any words to eloquently describe the barbaric act committed on Mumbai starting from 26th nov Night and lasted more than 60 hrs by some F$#&g bastards. I know the wounds are still fresh so all of us are pondering over the issue and after few days..everything will be normal: We will be busy at our day-2day routines for rozi-roti. Politicians will make huge hue-n-cry and would create a big Election-agenda, State Govt will blame central govt and vice versa, Police will try to learn...how to combat AK-47 wallahs with their service revolvers (and few with their Lathis), Army will again go into their job making sure we r safe on borders.....we sleep well when they spend the sleepless nites for good-4-nothing ppl like us, slowly and surely..everything will fall into place.....cricket will take over the Tajs and Oberois and Nariman Houses, Movie halls will be again jam-packed.... we all will forget everything....we won't get time to utilize our right to vote and try to churn out the true meaning of democracy. After few months..there would be similar attack in any other city/town of our country and we'll again UNITE to FRAGMENT again......
Ask to urself: For how many days, the fire in our words, our deeds, our action will last? Are we ready to be killed for no fault of ours by some )%$#@&* Terrorists? Are we still waiting for a Blast or Terrorist attack on our neighborhood? Do we still believe that "STAND Up and BE COUNTED" looks good on book??
I don't have answers for the above, if you have..please lemme know.
I won't go into the topic, enough has been said about it already. But what I would like to comment upon is your writing skill. It's extra-ordinary! Haven't seen many who can write as well in Hindi. Kudos! :)