काँच,कीलें,पिन नुकीले,धूर्त धरती,छत,दीवारें
जल रहे धू-धू अंगारे,हीलियम के हम ग़ुब्बारे;
जल रहे धू-धू अंगारे,हीलियम के हम ग़ुब्बारे;
सब हमें ही ताकते हैं,साधते हम पर निशाना,
वो ज़माना लद गया , आसान था जब पार पाना,
जन्म से वो 'खल' मैं 'नायक' , वो 'कमीने' हम 'बेचारे',
जल रहे धू-धू अंगारे,हीलियम के हम ग़ुब्बारे;
साँस तक उनकी विषैली , सुन न लेना बात मैली,
है पहेली चाल उनकी,पुतलियाँ निर्मम कुचैली,
वो सँङाँधी खुले गठ्ठर, हम ज़वाहराती पिटारे,
जल रहे धू-धू अंगारे,हीलियम के हम ग़ुब्बारे,
कुछ ग़ुब्बारे भी नुकीले,ज़िस्म उग आयी हैं कीलें,
रंग धूसर,सुस्त उङानें,आ के मेरी ख़ाल छीलें,
भयाशंका, दगा़ शंका, हवा की नज़रें उतारें,
जल रहे धू-धू अंगारे,हीलियम के हम ग़ुब्बारे,
ऐ ग़ुब्बारे फूट जाना, ज़िस्म न पाना नुकीला,
रंग धूसर, सुस्त उङानें, क्षितिज का अरमाँ लचीला,
या कि 'रुपक' उङा करना, आस की डोरी सहारे,
हमको बस दिखते हैं तारे, हीलियम के हम ग़ुब्बारे।
है पहेली चाल उनकी,पुतलियाँ निर्मम कुचैली,
वो सँङाँधी खुले गठ्ठर, हम ज़वाहराती पिटारे,
जल रहे धू-धू अंगारे,हीलियम के हम ग़ुब्बारे,
कुछ ग़ुब्बारे भी नुकीले,ज़िस्म उग आयी हैं कीलें,
रंग धूसर,सुस्त उङानें,आ के मेरी ख़ाल छीलें,
भयाशंका, दगा़ शंका, हवा की नज़रें उतारें,
जल रहे धू-धू अंगारे,हीलियम के हम ग़ुब्बारे,
ऐ ग़ुब्बारे फूट जाना, ज़िस्म न पाना नुकीला,
रंग धूसर, सुस्त उङानें, क्षितिज का अरमाँ लचीला,
या कि 'रुपक' उङा करना, आस की डोरी सहारे,
हमको बस दिखते हैं तारे, हीलियम के हम ग़ुब्बारे।
रुपक
Comments
धन्यवाद समीर जी काफि समय बाद आपकी टिप्पणी आयी,
सही कहा रजनीश,गुब्बारे का एक और रुपक भयभीत मन है, आज के समय मे मनुष्य हर समय डरा हुआ रहता है वैसे ही जैसे विषम परिस्थिती में फँसा एक गु़ब्बारा।