(परसाई जी ने अपने प्रसिद्ध व्यंग्य में 'निंदा रस' को सबसे उच्च स्थान दिया है,किंतु उससे भी अधिक सम्मोहित करने वाला रस है 'निद्रा रस', हममें से हर कोई बहुधा इसकी चपेट में आ ही जाता है,तब 'निद्रा-रस' के पाश में आने वाले की जो मानसिक व शारीरिक दशा होती है उसी का वर्णन करता है 'बघेली' भाषा में लिखा गया यह छंद,'बघेली' उत्तर-पूर्वी मध्य-प्रदेश मे बोली जाने वाली बोली है,रीवा,सतना,शहडोल,सीधी और अंचल के अन्य जिले इस बोली का प्रतिनिधित्व करते हैं,रचना में बघेली भाषा के सुने हुए शब्दों का प्रयोग किया गया है अतः संभावित व्याकरण त्रुटि के लिये रचनाकार क्षमाप्रार्थी है सुधार के लिये टिप्पणीयों का सहर्ष स्वागत है)
महाविकट औंघाई
मूङ* तऊ पिरात*, रात मा अघात* भर लगी,
आँखि मुँदर जात,छीँट-छीँट भर दिहेन नदी,
चार ठे मनई* दिखैं हजार के बरात कस,
बिरबा* कस झूम रहेन,हमका बिन पिये चढी।
आँखि मुँदर जात,छीँट-छीँट भर दिहेन नदी,
चार ठे मनई* दिखैं हजार के बरात कस,
बिरबा* कस झूम रहेन,हमका बिन पिये चढी।
टूटि गै तमाम देह,फुरिन* कहेन राम देह,
दानव बन देह मा समाई,
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई*।
जैसन भन्नात मूङ,लप्पङ* पा जात मूङ,
फेरौ लङियात मूङ,जिद्दी जल्लाद मूङ,
सोन चाँदी रुपिया पैसा सबका लगा सतैसा*,
चूल्हबा मा जाय धमाई,
दानव बन देह मा समाई,
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई।
दानव बन देह मा समाई,
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई*।
जैसन भन्नात मूङ,लप्पङ* पा जात मूङ,
फेरौ लङियात मूङ,जिद्दी जल्लाद मूङ,
सोन चाँदी रुपिया पैसा सबका लगा सतैसा*,
चूल्हबा मा जाय धमाई,
दानव बन देह मा समाई,
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई।
तजबीज* लै बिहन्ने* से, राति से सकन्ने* से,
कूकुर* चौकन्ने से,दिद्दा*,बूटू*,मुन्ने से,
सोयेन पसार गोङ*,बेच के हजार घोङ,
जिउ के जेऊनार* नॆ लगाई,
दानव बन देह मा समाई,
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई।
कूकुर* चौकन्ने से,दिद्दा*,बूटू*,मुन्ने से,
सोयेन पसार गोङ*,बेच के हजार घोङ,
जिउ के जेऊनार* नॆ लगाई,
दानव बन देह मा समाई,
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई।
सेंत* बिल्लियाबा* ना,संचे* होय जाबा ना,
खोतङी* खजुआबा ना,दरबारै लगाबा ना,
'रुपक' वा रोमय* से ना जाई,
जना दानव के घोटकी* चपाई*,
खोतङी* खजुआबा ना,दरबारै लगाबा ना,
'रुपक' वा रोमय* से ना जाई,
जना दानव के घोटकी* चपाई*,
दानव बन देह मा समाई,
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई।'रुपक'
जम्हाई के जमाई महाविकट औंघाई।'रुपक'
(बघेली शब्दार्थः:
मूङ-सर-head;पिरात-दर्द-pain;अघात-संतोषजनक-more than enough;मनई-लोग-people;बिरबा-पेङ-tree;फुरिन-वास्तव मे-really/I swear;औंघाई-निद्रा-feeling sleepy/sleeping (v);लप्पङ-तमाचा-slap;सतैसा-एक प्रकार का अपशकुन-jinx;तजबीज-पूछ-ताछ-enquiry;बिहन्ने-सुबह-morning;सकन्ने-सुबह-morning;कूकुर-कुत्ता-dog;दिद्दा-दादी-grand mother,बूटू-छोटी बच्ची-little girl;गोङ-पैर-legs;जेऊनार-दोपहर का खाना-lunch;सेंत-अकारण-unnecessarily;बिल्लियाबा-परेशान होना-worrying;संचे-शांत-pacify;खोतङी-खोपङी-skull/head;रोमय-रोने से-crying;घोटकी-गला-neck;चपाई-दबाना-pressing forcefully;)
Comments
पलटाई दिहे भाई ..
महाविकट औंघाई ..
बेहतरीन ..
सब्दों में बयान नही किया जा सकता ..
Thanks sup ,hope MUL won't allow many such "Aunghai" Opportunities! :)
Bahut badiya hai yaar, tumhare blog ke comments waley coloum me likne ki koshish ki, par bana nahi. Lekin tumne Shambhu Kaku aur Babulal dahiya ki yaad dila di
aaaakaaash