अकङ से फूलती नसें हैं, जिस्म पत्थर है,
दिखा दो ज़ोर, कि तुमसे न जीत पाए कोई।
सिकुङ के फूल सी बैठी है जिसके मन डर है,
दिखा दो ज़ोर कि, तुमसे न जीत जाए कहीं।
दिखा दो ज़ोर, क्या माँ का पिया है दूध नहीं,
दिखा दो ज़ोर कि, राखी में क़सम खायी थी,
दिखा दो ज़ोर कि, जब पोतङे में ही थे तुम,
तुम्हारी गंदगीं औरत ने ही उठाई थी।
दिखा दो ज़ोर कि, पौरुष न हार जाये कहीं,
दिखा दो ज़ोर कि, घर का पका ही खाते हो,
दिखा दो ज़ोर कि, दफ्तर से थक के आये हो,
दिखा दो ज़ोर, क्या बीवी से खौ़फ़ खाते हो।
दिखा दो ज़ोर कि, तालीम ले के आये हो,
सबक किताब के, मैडम ने ही सिखाये थे,
दिखा दो ज़ोर कि, दादी ने ही बचाया था,
गणित के टेस्ट में, जब शून्य ले के आये थे।
दिखा के ज़ोर तुम औरंगज़ेब बन जाओ; जहान औरतों बगै़र भी चल जायेगा।
रुपक
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