आज भी कल के जैसी माँ


जीवन पथ की  मृगतृष्णा में,

तरुवर छाया जैसी  माँ,
पल-प्रतिपल परिवर्तित जग में
आज भी कल के जैसी माँ।

कण-कण क्षण-क्षण है जिसका ऋण
हर क्षण कुछ दे देती माँ
उच्च भेंट, या तुच्छ भेंट
सब अश्रु धार से लेती माँ,
पल-प्रतिपल परिवर्तित जग में
आज भी कल के जैसी माँ।

भव-भय की घुड़दौड़ भयानक,
आशाओं का शोर जहाँ,
जीत-हार से परे, पुरस्कृत
प्रतिदिन ही कर देती माँ,
पल-प्रतिपल परिवर्तित जग में
आज भी कल के जैसी माँ।

क्रोध, कपट, कटुता, कलुषित मन
सब आँखोँ से पढ़ लेती,
आँचल में अंगार समेटे
शीतलता ही देती माँ,
सुत या सुता, निकट या ज़ुदा,
वत्सला स्नेह से बहती माँ,
पल-प्रतिपल परिवर्तित जग में
आज भी कल के जैसी माँ।

दिवस हैं द्योतक, स्म्रतियों के,
कब मनस से विस्म्रत होती माँ,
पूज्य हैं भगिनी, बनिता, पुत्री,
बनतीं एक दिन वो भी माँ,
'रूपक' मातृ दिवस में नत,
क्या होता जो न होती माँ
पल-प्रतिपल परिवर्तित जग में
आज भी कल के जैसी माँ।

रूपेश पाण्डेय 'रूपक'

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