ऎसी भी क्या बात हो गयी,
दिन डूबा तो रात हो गयी
ऎसी भी क्या बात हो गयी।
कभी-कभी दिन लंबे होते, उमस भरे, लू भरे, अनमने;
कभी-कभी दिन छोटे होते, टीस लिए, मदमयी गुनगुने।
रविकर-हिमकर की सन्धि में
दिन की बन्दरबांट हो गयी।
ऎसी भी क्या बात हो गयी,
दिन डूबा तो रात हो गयी
ऎसी भी क्या बात हो गयी।
कहते हैं यह समय नहीं था, अस्त अचानक हो जाने का;
सही तरीका किसे पता है, तम में ओझल हो जाने का ?
मेघ अचल से टकराया तो
लोचन से बरसात हो गयी।
ऎसी भी क्या बात हो गयी,
दिन डूबा तो रात हो गयी
ऎसी भी क्या बात हो गयी।
सुख के जिस एकांग मार्ग पर, दिन की दूरी नाप रहे हो,
उस रस्से के एक पड़ाव पर, खड़े-खड़े तुम कांप रहे हो;
खनक में जीवन की सनक,
नटों की करामात हो गयी।
ऎसी भी क्या बात हो गयी,
दिन डूबा तो रात हो गयी
ऎसी भी क्या बात हो गयी।
क्या होता जो दिन बढ़ जाता, मेघ कहीं कोई अड़ जाता,
उल्लू चिढ़कर भों सिकोड़ता, चमगादड़ भी आंख दिखाता;
भेड़ों की भिड़दौड में मृग से,
कस्तूरी आज़ाद हो गयी।
ऎसी भी क्या बात हो गयी,
दिन डूबा तो रात हो गयी
ऎसी भी क्या बात हो गयी।
नीति-नियम विचारक सारे, शतुरमुर्ग से गड़े हुए हैं,
दिन को पाठ पढ़ाने वाले, कम्बल ओढ़े पड़े हुए हैं;
छोटे दिन की दमक में 'रूपक'
बड़े दिनों की आस सो गई।
ऎसी भी क्या बात हो गयी,
दिन डूबा तो रात हो गयी
ऎसी भी क्या बात हो गयी।
रूपेश पाण्डेय 'रूपक'
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