या हर तरह सोचा नहीं,
क्यों टूट जाती नींद जब,
ये लग रहा सोया नहीं।
सच जलधि की शांति,
या सच हठी उद्दंडता,
सच जुनूनी क्रांति,
या सच अडिग निस्तब्धता,
क्यों मैं उसे निष्ठुर कहूँ,
यदि फफक कर रोया नहीं,
क्यों टूट जाती नींद जब,
ये लग रहा सोया नहीं।
षड्यंत्र के उस व्यूह में,
अभिमन्यु का संघर्ष सच,
या कौरवों को श्रेय दूं
यदि युद्ध का आदर्श सच,
यदि विजय केवल लक्ष्य है,
तो मार्ग देखूँ या नहीं
क्यों टूट जाती नींद जब,
ये लग रहा सोया नहीं।
कौरव नहीं, पांडव नहीं,
न राम न दशमेश हूँ,
तट के निकट निष्क्रिय खड़ा,
एक अनमना आवेश हूँ,
निकलो निठल्ली सोच से,
'रुपक' ये रण तेरा नहीं।
क्यों टूट जाती नींद जब,
ये लग रहा सोया नहीं।
©रुपेश पाण्डेय 'रूपक'
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